पौष शुक्ल पक्ष तृतीया दिन मे 6:22pmतक उपरि चतुर्थी रविवार श्रवण नक्षत्र रात्रि मे 30:12तक २५|१२|२०२२

यथावयो यथाकालं यथाप्राणं च ब्राह्मणे।
प्रायश्चितं प्रदातव्यं ब्राह्मणैर्धपाठकैं।।
येन शुद्धिमवाप्रोति न च प्राणैर्विज्युते।
आर्ति वा महती याति न चैतद् व्रतमहादिश।।

अर्थात यदि किसी पापी का अक्षम्य अपराध न हो तो उसकी उम्र, समय और शारीरिक क्षमता के अनुसार दंड देना चाहिए। दंड ऐसा न हो कि उसकी मृत्यु हो जाए बल्कि दंड ऐसा हो जो उसके विचार को शुद्ध कर सके यदि अपराध अक्षम्य है तो प्राण दंड देना ही पापी के प्रति न्याय है सामान्य अपराध करने वाले को उसके प्राणों को संकट में डालने वाला दंड देना उचित नहीं है उसे एक वार सुधरने का अवसर देना चाहिए।

मंगलमय सुखद दिवस

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