यत् सुखं सेवमानोपि
धर्मार्थाभ्यां न हीयते।
कामं तदुप सेवेत
न मूढ व्रतमाचरेत्॥
अर्थात – मनुष्य को न्यायपूर्वक धर्म के मार्ग पर चलकर अर्थ का संग्रह करना चाहिए और भौतिक सुखों का भरपूर उपभोग करना चाहिए, लेकिन उनमें इतना आसक़्त नही हो जाना चाहिए जिससे अधर्म के मार्ग पर जाना पड़ जाए अर्थात वही संसार ही अच्छा लगने लगे और धर्म का पथ ही छूट जाए और जीवन मूल उद्देश्य से भटक जाए
मङ्गलं सुप्रभातम्