पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी 8:48AM तक उपरि अष्टमी गुरुवार उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र २९/१२/२०२२

दूरस्थोऽपि न दूरस्थो
यो यस्य मनसि स्थितः।
यो यस्य हृदये नास्ति
समीपस्थोऽपि स दूरतः॥

अर्थात – जो व्यक्ति किसी के हृदय (अतिशय समीप) में रहता है, वह अत्यन्त दूर होने पर भी दूर नहीं होता है। जो हृदय ( समीप )में नहीं रहता है वह अतिशय सन्निकट रहने पर भी दूर ही रहता है ऐसै भगवान भी है प्रत्येक जीव के हृदय मे है पर जीव उन्हे दूर अनुभव करता है संसार वहुत दूर है पर वह समीप अनुभव करता है क्योकि वह संसार को हृदय मे वसाए हुए है

मङ्गलं सुप्रभातम्

BOOK MANDIR

Book Mandir for any occasion

Book Mandir
Inquire now